दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
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ग़म की उलझी हुई लकीरों में
माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
ये किसी नाम का नहीं होता
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
तिरी यादों को प्यार करती हूँ
साथ छूटे थे साथ छूटे हैं
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
तुझ को दुनिया के साथ चलना है
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ