माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
सर पे आँचल नहीं होता है तो डर होता है
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साथ छूटे थे साथ छूटे हैं
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
तिरी यादों को प्यार करती हूँ
जंगल दिखाई देगा अगर ये यहाँ न हों