जंगल दिखाई देगा अगर ये यहाँ न हों
सच पूछिए तो शहर की हलचल हैं लड़कियाँ
उन से कहो कि गँगा के जैसी पवित्र हैं
जिन के लिए शराब की बोतल हैं लड़कियाँ
'अंजुम' तुम अपने शहर के लड़कों से ये कहो
पैरों की बेड़ियाँ नहीं पायल हैं लड़कियाँ
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दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
ग़म की उलझी हुई लकीरों में
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
अपनी आवारा-मिज़ाजी को नया नाम न दो
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
ये किसी नाम का नहीं होता
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा