ग़म की उलझी हुई लकीरों में
अपनी तक़दीर देख लेती हूँ
आइना देखना तो भूल गई
तेरी तस्वीर देख लेती हूँ
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तुझ को दुनिया के साथ चलना है
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
ये किसी नाम का नहीं होता
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
तिरी यादों को प्यार करती हूँ
साथ छूटे थे साथ छूटे हैं
रंग इस मौसम में भरना चाहिए
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा