तिरी यादों को प्यार करती हूँ
सौ जन्म भी निसार करती हूँ
तुझ को फ़ुर्सत मिले तो आ जाना
मैं तिरा इंतिज़ार करती हूँ
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रंग इस मौसम में भरना चाहिए
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
जंगल दिखाई देगा अगर ये यहाँ न हों
अपनी आवारा-मिज़ाजी को नया नाम न दो
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
ये किसी नाम का नहीं होता
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
तुझ को दुनिया के साथ चलना है