जीवन Poetry (page 3)

साफ़ आईना है क्यूँ मुझे धुँदला दिखाई दे

ज़ुबैर फ़ारूक़

मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना

ज़ुबैर अमरोहवी

पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा

ज़ुबैर अली ताबिश

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं

ज़िया मज़कूर

बे-सबब उस के नाम की मैं ने

ज़िया मज़कूर

सफ़र मुझ पर अजब बरपा रही है

ज़िया ज़मीर

'ज़िया' वो ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है

ज़िया जालंधरी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

सँभाला

ज़िया जालंधरी

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

दिखावा

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

निगाहों में ये क्या फ़रमा गई हो

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

सुल्ह जिस से रही मेरी ता-ज़िंदगी

ज़ेहरा निगाह

कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल

ज़ेहरा निगाह

वो किताब

ज़ेहरा निगाह

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

कल रात ढले

ज़ेहरा निगाह

बुलावा

ज़ेहरा निगाह

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था

ज़ेहरा निगाह

जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

मैं ज़िंदगी के सभी ग़म भुलाए बैठा हूँ

ज़ीशान साहिल

तालिबान

ज़ीशान साहिल

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