ज़ुल्मत Poetry (page 5)

तेरे रुख़्सारों से दुनिया रौशन थी

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त की गराँ हर एक साअ'त टूट जाती है

ग़ुफ़रान अमजद

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

मशवरा देने की कोशिश तो करो

फ़ारूक़ नाज़की

मशवरा देने की कोशिश तो करो

फ़ारूक़ नाज़की

शनासाई का सिलसिला देखती हूँ

फरीहा नक़वी

हम जिसे समझते थे सई-ए-राएगाँ यारो

फ़रीद जावेद

जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी

ज़िंदाँ की एक सुब्ह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उम्मीद-ए-सहर की बात सुनो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सियासी लीडर के नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरी जाँ अब भी अपना हुस्न वापस फेर दे मुझ को

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ब्लैक-आउट

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब्र की चादर तह कर दी

फ़हीम शनास काज़मी

रुस्वा भी हुए जाम पटकना भी न आया

एज़ाज़ अफ़ज़ल

मदावा-ए-जुनूँ सैर-ए-गुलिस्ताँ से नहीं होता

एजाज़ वारसी

हर एक शय की हक़ीक़त से बा-ख़बर देखूँ

एजाज़ अासिफ़

तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

हुसूल-ए-मक़्सद में आख़िरश यूँ रहेगी क़िस्मत दख़ील कब तक

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली

एहतराम इस्लाम

फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली

एहतराम इस्लाम

है निगाहों में कोह-ए-तूर मियाँ

डॉक्टर आज़म

हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने

दिवाकर राही

गुलों पे ख़ाक-ए-मेहन के सिवा कुछ और नहीं

दर्शन सिंह

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