ज़ुल्मत Poetry (page 4)

दिल में हो गर ख़्वाहिश-ए-तस्वीर-ए-इबरत देखना

सअादत बाँदवी

नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है

रहमान फ़ारिस

तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या

रहबर जौनपूरी

क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की

रहबर जौनपूरी

और कितने अभी सितम होंगे

रज़ी रज़ीउद्दीन

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

रज़ा मौरान्वी

सवाद-ए-शहर में थोड़ी सी ये जो जन्नत है

रज़ा अश्क

आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी

रासिख़ इरफ़ानी

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

ये वहम है मेरा कि हक़ीक़त में मिला है

राशिद हामिदी

ढल गई हस्ती-ए-दिल यूँ तिरी रानाई में

रईस अमरोहवी

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

इलियास इश्क़ी

मुझे तेरी जुदाई का ये सदमा मार डालेगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया

हसन निज़ामी

पल रहे हैं कितने अंदेशे दिलों के दरमियाँ

हसन आबिदी

आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार के

हनीफ़ अख़गर

यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए

हामिदी काश्मीरी

शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं

हामिदी काश्मीरी

शाम से ज़ोरों पे तूफ़ाँ है बहुत

हामिदी काश्मीरी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना

हबीब जालिब

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो

हबीब जालिब

और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना

हबीब जालिब

और सब भूल गए हर्फ़ सदाक़त लिखना

हबीब जालिब

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

सुब्ह-ए-काज़िब

गोपाल मित्तल

शब-ताब

गोपाल मित्तल

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