आबरू Poetry (page 4)

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया

हाशिम रज़ा जलालपुरी

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

हसन आबिद

नियाज़-ओ-नाज़ का पैकर न अर्श पर ठहरा

हमीद कौसर

चुरा के मेरे ताक़ से किताब कोई ले गया

हमीद अलमास

उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया

हफ़ीज़ जालंधरी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह

हबीब जालिब

इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

कि दर गुफ़्तन नमी आयद

गोपाल मित्तल

एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम

गोपाल मित्तल

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन

ग़ालिब

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता

ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

ग़ालिब

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मचलती है मिरे सीने में तेरी आरज़ू क्या क्या

फ़रोग़ हैदराबादी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के

फ़ारिग़ बुख़ारी

शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं

फ़रहान सालिम

मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

फ़ना बुलंदशहरी

फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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