आबरू Poetry (page 2)

सुख़न की शब लहू होती रहेगी

सय्यद अमीन अशरफ़

गुलज़ार-ए-वतन

सुरूर जहानाबादी

कोई भी बात न थी वारदात से पहले

सुलतान सुबहानी

ये और बात कि 'अख़्तर' हवेलियाँ न रहीं

सुल्तान अख़्तर

तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन

सुल्तान अख़्तर

पस-ए-ग़ुबार-ए-तलब ख़ौफ़-ए-जुस्तुजू है बहुत

सुल्तान अख़्तर

क्यूँ और ज़ख़्म सीने पे खाओ हो दोस्तो

सुलैमान अहमद मानी

मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

ये बुझे बुझे सितारे ये धुआँ धुआँ सवेरा

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में

ज़ौक़

वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें

ज़ौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

ज़ौक़

ज़बाँ का ज़ाविया लफ़्ज़ों की ख़ू समझता है

शहपर रसूल

मिरे नसीब ने जब मुझ से इंतिक़ाम लिया

शाज़ तमकनत

उन का ख़याल हर तरफ़ उन का जमाल हर तरफ़

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

निगार-ए-मह-वश ओ महबूब-ए-लाला-रू की तरह

शमीम करहानी

दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ

शकेब जलाली

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका

शकेब जलाली

आशिक़ का जहाँ में घर न देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

जाने किस सम्त से हवा आई

शहज़ाद अहमद

सुना हम को आते जो अंदर से बाहर

शाद लखनवी

शब-ए-विसाल थी रौशन फ़ज़ा में बैठा था

शबाब ललित

'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

शब-ए-तारीक चुप थी दर-ओ-दीवार चुप थे

सरवर अरमान

तश्कील बदर की है कभी है हिलाल की

सरीर काबिरी

इक एक हर्फ़ की रखनी है आबरू मुझ को

सलीम सिद्दीक़ी

यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है

सलीम सिद्दीक़ी

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