आबरू Poetry (page 6)

नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला

अमीन हज़ीं

रवाँ दवाँ नहीं याँ अश्क चश्म-ए-तर की तरह

अमानत लखनवी

ज़ौक़ ओ शौक़

अल्लामा इक़बाल

तस्वीर-ए-दर्द

अल्लामा इक़बाल

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

जिब्रईल ओ इबलीस

अल्लामा इक़बाल

ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही

अल्लामा इक़बाल

गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

अल्लामा इक़बाल

मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो

अली सरदार जाफ़री

गुनाह

अली मोहम्मद फ़र्शी

वरक़ है मेरे सहीफ़े का आसमाँ क्या है

अली अब्बास उम्मीद

आँख दरिया जिगर लहू करना

अख़्तर ज़ियाई

न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते

अख़्तर शीरानी

निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है

अख़्तर सईद ख़ान

तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले

अख़तर मुस्लिमी

कहा था उस ने मोहब्बत की आबरू रखना

अकबर हमीदी

सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी

अकबर अली खान अर्शी जादह

जो अर्ज़ां है तो है उन की मता-ए-आबरू वर्ना

अहमक़ फफूँदवी

नई हद-बंदियाँ होने को हैं आईन-ए-गुलशन में

अहमक़ फफूँदवी

ये तेरा ख़याल है कि तू है

अहमद ज़फ़र

चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़'

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे

अहमद फ़राज़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

हमारी तिश्ना-लबी अब सुबू से खेलेगी

अफ़ीफ़ सिराज

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

अब्दुल मन्नान तरज़ी

दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा

अब्दुल हमीद अदम

क्या सहल समझे हो कहीं धब्बा छुटा न हो

अब्दुल हलीम शरर

क्या सहल समझे हो कहीं धब्बा छुटा न हो

अब्दुल हलीम शरर

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