तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
पिए बग़ैर ही हम पाँव लड़खड़ा के चले
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(735) Peoples Rate This
वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
उस को भड़काऊ न दामन की हवाएँ दे कर
किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं
तुम अपनी ज़बाँ ख़ाली कर के ऐ नुक्ता-वरो पछताओगे
दरिया नज़र न आए न सहरा दिखाई दे
देहात के बसने वाले तो इख़्लास के पैकर होते हैं
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना