उस को भड़काऊ न दामन की हवाएँ दे कर
शोला-ए-इश्क़ मिरे दिल में दबा रहने दो
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मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
देहात के बसने वाले तो इख़्लास के पैकर होते हैं
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर