दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
कुछ बे-क़ुसूर लोग सज़ा माँगने लगे
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मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे
जो बा-ख़बर थे वो देते रहे फ़रेब मुझे
इक़रार-ए-मोहब्बत तो बड़ी बात है लेकिन
शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया
नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे