जो बा-ख़बर थे वो देते रहे फ़रेब मुझे
तिरा पता जो मिला एक बे-ख़बर से मिला
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किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं
इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो
मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
ख़ुशी ही शर्त नहीं लुत्फ़-ए-ज़िंदगी के लिए
फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी
कुछ इस तरह के बहारों ने गुल खिलाए हैं
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे