कुछ इस तरह के बहारों ने गुल खिलाए हैं
कि अब तो फ़स्ल-ए-बहाराँ से डर लगे है मुझे
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
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मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो
तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से