अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
और टूटे तो बिखर जाए नगीनों की तरह
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तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से
मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना
तुम अपनी ज़बाँ ख़ाली कर के ऐ नुक्ता-वरो पछताओगे
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे
मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी