वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले
है रीत देश देश की चलन चलन की बात है
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले
इक़रार-ए-मोहब्बत तो बड़ी बात है लेकिन
हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे
उस को भड़काऊ न दामन की हवाएँ दे कर
इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया
ख़ुशी ही शर्त नहीं लुत्फ़-ए-ज़िंदगी के लिए