आंसू Poetry (page 34)

रेस्तोराँ

अहमद नदीम क़ासमी

यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ

अहमद नदीम क़ासमी

उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे

अहमद नदीम क़ासमी

लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धुल जाएँ

अहमद नदीम क़ासमी

होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए

अहमद मुश्ताक़

बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा

अहमद मुश्ताक़

ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे

अहमद मुश्ताक़

शाम होती है तो याद आती है सारी बातें

अहमद मुश्ताक़

रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था

अहमद मुश्ताक़

रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू

अहमद मुश्ताक़

हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है

अहमद मुश्ताक़

छट गया अब्र शफ़क़ खुल गई तारे निकले

अहमद मुश्ताक़

बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा

अहमद मुश्ताक़

कह डाले ग़ज़लों नज़्मों में अफ़्साने क्या क्या

अहमद मासूम

कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें

अहमद ख़याल

मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में

अहमद कमाल परवाज़ी

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है

अहमद कमाल परवाज़ी

तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं

अहमद कमाल परवाज़ी

एक आँसू से कमी आ जाएगी

अहमद जावेद

कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में

अहमद जावेद

इस से ज़ियादा कुछ नहीं

अहमद हमेश

ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ

अहमद हमदानी

रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए

अहमद फ़राज़

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा

अहमद फ़राज़

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अहमद फ़राज़

दूर से क्या मुस्कुरा कर देखना

आग़ाज़ बरनी

शाइर-ए-रंगीं फ़साना हो गया

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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