एक आँसू से कमी आ जाएगी
ग़ालिबन दरियाओं के इक़बाल में
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एक खेल
एक तअस्सुर
आँखों की तज्दीदा
घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है
बे-ज़ारी की आख़िरी साअत
दिल आईना है मगर इक निगाह करने को
क्या पूछते हो शहर में घर और हमारा
अन-पढ़ गूँगे का रजज़
दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर
आख़िरुल-अम्र तिरी सम्त सफ़र करते हैं
दुनिया से तन को ढाँप क़यामत से जान को