अदम Poetry (page 4)
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
साग़र सिद्दीक़ी
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
साइल देहलवी
उस पार
रियाज़ लतीफ़
ना-मुकम्मल तआरुफ़
रियाज़ लतीफ़
रेत है इज़हार के पानी के पार
रियाज़ लतीफ़
नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब
रियाज़ लतीफ़
पाया जो तुझे तो खो गए हम
रियाज़ ख़ैराबादी
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
रियाज़ ख़ैराबादी
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
रियाज़ ख़ैराबादी
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
रिन्द लखनवी
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
रिन्द लखनवी
ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए
रिन्द लखनवी
अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
रिन्द लखनवी
मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है
रिफ़अत सेठी
शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा
रेहाना रूही
अफ़्लाक गूँगे हैं
रविश नदीम
रब्त हो ग़ैर से अगर कुछ है
रौनक़ टोंकवी
लाव-लश्कर जाह-ओ-हशमत है यहाँ
रसूल साक़ी
ये उम्र गुज़री है इतने सितम उठाने में
राशिद तराज़
उठ कर तिरे दर से कहीं जाने के नहीं हम
रशीद रामपुरी
मिरे घर के लोग जो घर मुझी को सुपुर्द कर के चले गए
रशीद रामपुरी
दिल की क्या क़द्र हो मेहमाँ कभी आए न गए
रशीद रामपुरी
न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते
रशीद लखनवी
जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही
रशीद लखनवी
हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है
रशीद लखनवी
डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए
रशीद लखनवी
इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ
राम रियाज़
लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो
रजब अली बेग सुरूर
ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ
रईस अमरोहवी
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