अदम Poetry (page 8)

न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ

बाक़र आगाह वेलोरी

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्या

अज़ीज़ वारसी

परछाइयाँ

अज़ीज़ तमन्नाई

आख़िरी दिन से पहले

अज़ीज़ क़ैसी

दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ

अज़ीज़ लखनवी

थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मुझ में ख़ुद मेरी अदम-मौजूदगी शामिल रही

अतीक़ुल्लाह

एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था

अतीक़ुल्लाह

नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी

अता तुराब

तालिब हो वहाँ आन के क्या कोई सनम का

आसिफ़ुद्दौला

सबा कहियो ज़बानी मेरी टुक उस सर्व-क़ामत को

आसिफ़ुद्दौला

जो शमशीर तेरी अलम देखते हैं

आसिफ़ुद्दौला

तख़्लीक़

आसिफ़ रज़ा

अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

आलम में अगर इश्क़ का बाज़ार न होता

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा

असर सहबाई

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी

आरज़ू लखनवी

यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास

अरशद अली ख़ान क़लक़

यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग

अरशद अली ख़ान क़लक़

वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप

अरशद अली ख़ान क़लक़

आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

ग़लत नहीं है दिल-ए-सुल्ह-ख़ू जो बोलता है

अरशद अब्दुल हमीद

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