यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग
महसूस आज तक न हुए नक़्श-ए-पा-ए-शम्अ'
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बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़
वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो
आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे
वो एक रात तो मुझ से अलग न सोएगा
पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का
बुत-परस्ती में भी भूली न मुझे याद-ए-ख़ुदा
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन