आकाश Poetry (page 3)

जुनून-ए-इश्क़ में सद-चाक होना पड़ता है

रेहाना रूही

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या

रज़ा मौरान्वी

उस से बढ़ कर तो कोई बे-सर-ओ-सामाँ न मिला

रविश सिद्दीक़ी

अफ़्लाक गूँगे हैं

रविश नदीम

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

बारिश नहीं लाती कभी अफ़्लाक से ख़ुशबू

रऊफ़ अमीर

जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं

राना आमिर लियाक़त

कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए

रईस अमरोहवी

कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता

इमरान-उल-हक़ चौहान

अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है

हस्सान अहमद आवान

ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है

हसन नईम

देखूँ वो करती है अब के अलम-आराई कि मैं

हसन अज़ीज़

ये फ़ज़ा-ए-नील-गूँ ये बाल-ओ-पर काफ़ी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

बे-कराँ दरिया हूँ ग़म का और तुग़्यानी में हूँ

हमीद नसीम

याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो

हमीद अलमास

वही पस्ती ओ बुलंदी है ज़मीं की आतिश

हैदर अली आतिश

बस्तियाँ ही बस्तियाँ हैं गुम्बद-ए-अफ़्लाक में

हैदर अली आतिश

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए

हफ़ीज़ जालंधरी

कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा

हफ़ीज़ जालंधरी

जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है

हबीब जालिब

उड़ना तो बहुत उड़ना अफ़्लाक पे जा रहना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

मकान

गुलज़ार

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