आंख Poetry (page 8)

मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी

तारिक़ नईम

दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है

तारिक़ नईम

ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं

तारिक़ नईम

अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए

तारिक़ नईम

आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है

तारिक़ नईम

तेज़ लहजे की अनी पर न उठा लें ये कहीं

तारिक़ जामी

तिरी चाल धुन तिरी साँस सुर मिरे दिल को आ के सँभाल भी

तनवीर मोनिस

जचती नहीं कुछ शाही-ओ-इम्लाक नज़र में

तनवीर अंजुम

एक आवाज़

तख़्त सिंह

मिरे ख़याल का साया जहाँ पड़ा होगा

तख़्त सिंह

बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है

ताज सईद

सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी

न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है

तहज़ीब हाफ़ी

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं

तहज़ीब हाफ़ी

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ताहिरा जबीन तारा

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ताहिरा जबीन तारा

बुझ रही है आँख ये जिस्म है जुमूद में

ताहिर अदीम

वही बे-लिबास क्यारियाँ कहीं बेल बूटों के बल नहीं

तफ़ज़ील अहमद

सारबान

ताबिश कमाल

बे-घरी

ताबिश कमाल

अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था

ताबिश कमाल

एक धुँदली याद

तबस्सुम काश्मीरी

देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह

ताबाँ अब्दुल हई

दिल के सहरा में बड़े ज़ोर का बादल बरसा

ताब असलम

सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया

तअशशुक़ लखनवी

न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख

तअशशुक़ लखनवी

क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख

सय्यदा शान-ए-मेराज

मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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