आंख Poetry (page 6)
ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से
वक़ार मानवी
गई है शाम अभी ज़ख़्म ज़ख़्म कर के मुझे
वक़ार मानवी
यूँ घर से मोहब्बत के क्या भाग चले जाना
वलीउल्लाह मुहिब
मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब
वलीउल्लाह मुहिब
मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है
वलीउल्लाह मुहिब
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
वलीउल्लाह मुहिब
देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं
वलीउल्लाह मुहिब
बुलबुल वो गुल है ख़्वाब में तू गा के मत जगा
वलीउल्लाह मुहिब
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
वलीउल्लाह मुहिब
तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते
वली उज़लत
ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे
वली उज़लत
जब से दिलबर ने आँख फेरा है
वली उज़लत
दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब
वली उज़लत
धुएँ की ओट से बाहर भी आ गया होता
वाजिद क़ुरैशी
सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा
वाजिद अली शाह अख़्तर
अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ
वाजिद अली शाह अख़्तर
मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक
वजीह सानी
होंट मसरूफ़-ए-दुआ आँख सवाली क्यूँ है
वजीह सानी
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
तुझ में तो एक ख़ू-ए-जफ़ा और हो गई
वहीद इलाहाबादी
ठहरी है तो इक चेहरे पे ठहरी रही बरसों
वहीद अख़्तर
परोमीथियस
वहीद अख़्तर
ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है
वहीद अख़्तर
अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे
वहीद अख़्तर
शाफ़्फ़ाफ़ियाँ(2)
वहीद अहमद
तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे
विश्वनाथ दर्द
तख़्त-ए-ताऊस मिरा तख़्त-ए-हज़ारा तुम हो
विश्मा ख़ान विश्मा
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