असर Poetry (page 3)

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

अगर रोना ही अब मेरा मुक़द्दर है मोहब्बत में

वक़ार मानवी

ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले

वक़ार बिजनोरी

एक इशारे में बदल जाता है मयख़ाने का नाम

वक़ार बिजनोरी

तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़

वलीउल्लाह मुहिब

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा

वली उज़लत

मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे

वकील अख़्तर

हाल-ए-दिल ऐ बुतो ख़ुदा जाने

वाजिद अली शाह अख़्तर

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से

वाहिद प्रेमी

शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह

वाहिद प्रेमी

ग़म के हाथों शुक्र-ए-ख़ुदा है इश्क़ का चर्चा आम नहीं

वहीद क़ुरैशी

आग़ाज़

वर्षा गोरछिया

दिल प्यार के रिश्तों से मुकर भी नहीं जाता

वली मदनी

रफ़्ता रफ़्ता दिल-ए-बे-ताब ठहर जाएगा

उरूज ज़ैदी बदायूनी

वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं

उनवान चिश्ती

जब भी पेड़ों पे समर जागता है

उमर फ़रहत

दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका

उमैर नजमी

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

तिलोकचंद महरूम

बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत

तौसीफ़ तबस्सुम

इस बार हुआ कुन का असर और तरह का

तसनीम आबिदी

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया

तारिक़ क़मर

वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया

तारिक़ नईम

हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए

तारिक़ नईम

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