आवाज Poetry (page 19)

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ देर पहले नींद से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एलान नामा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक कहानी बहुत पुरानी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

और हवा चुप रही

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शौक़

इफ़्तिख़ार आज़मी

एहसास

इफ़्तिख़ार आज़मी

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

तय किया इस तरह सफ़र तन्हा

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई

हुमैरा रहमान

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

हुमैरा राहत

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

याद इतना है मिरे लब पे फ़ुग़ाँ आई थी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम

हीरा लाल फ़लक देहलवी

निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

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