उजागर Poetry (page 4)

शहर अपना है मगर लोग कहाँ हैं अपने

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

रौशनी होने लगी है मुझ में

रउफ़ रज़ा

तनख़्वाह-ए-तबर बहर-ए-दरख़्तान-ए-कुहन है

रशीद लखनवी

राज़ उल्फ़त के अयाँ रात को सारे होते

रशीद लखनवी

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

रशीद लखनवी

है अंधेरा तो समझता हूँ शब-ए-गेसू है

रशीद लखनवी

होता है साफ़ रू-ए-किताबी से ये अयाँ

रंजूर अज़ीमाबादी

दर्द-ए-दिल जब कभी अयाँ होगा

रमज़ान अली सहर

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

राम कृष्ण मुज़्तर

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शो'ला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ

इक़बाल अज़ीम

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

इंशा अल्लाह ख़ान

जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ

इंशा अल्लाह ख़ान

अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

याद कर वो दिन कि तेरा कोई सौदाई न था

हसरत मोहानी

बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की

हसरत मोहानी

वो पेच-ओ-ख़म जहाँ की हर इक रहगुज़र में है

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

देखने वाले को बाहर से गुमाँ होता नहीं

हामिद जीलानी

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

आसार-ए-इश्क़ आँखों से होने लगे अयाँ

हैदर अली आतिश

ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है

हैदर अली आतिश

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ

हैदर अली आतिश

बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

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