बदन Poetry (page 29)

ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ

फ़रहत एहसास

ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम

फ़रहत एहसास

ईमाँ का लुत्फ़ पहलू-ए-तश्कीक में मिला

फ़रहत एहसास

हम ने परिंद-ए-वस्ल के पर काट डाले हैं

फ़रहत एहसास

हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है

फ़रहत एहसास

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

हद्द-ए-बदन में मेरी ज़ात आ नहीं रही है

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

दिनी हैं सब कोई राती नहीं है

फ़रहत एहसास

दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है

फ़रहत एहसास

दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा

फ़रहत एहसास

बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए

फ़रहत एहसास

बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी

फ़रहत एहसास

औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा

फ़रहत एहसास

अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था

फ़रहत एहसास

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

फ़रहत एहसास

आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन

फ़रहत एहसास

आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया

फ़रहत एहसास

शहर-दर-शहर दीदा-वर भटके

फ़रहत अब्बास

छिपकिली

फ़रीद इशरती

मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ

फ़राग़ रोहवी

तमाम हुस्न-ओ-मआ'नी का रंग उड़ने लगा

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

लगा कि जैसे किसी काँपते हिरन को छुआ

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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