बदन Poetry (page 28)

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ

फ़ारिग़ बुख़ारी

कोई धड़कन कोई उलझन कोई बंधन माँगे

फ़रहत क़ादरी

ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया

फ़रहत एहसास

मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है

फ़रहत एहसास

क्या बदन है कि ठहरता ही नहीं आँखों में

फ़रहत एहसास

बे-बदन रूह बने फिरते रहोगे कब तक

फ़रहत एहसास

औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर

फ़रहत एहसास

अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं

फ़रहत एहसास

यही हिसाब-ए-मोहब्बत दोबारा कर के लाओ

फ़रहत एहसास

वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं

फ़रहत एहसास

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

फ़रहत एहसास

तेरा भला हो तू जो समझता है मुझ को ग़ैर

फ़रहत एहसास

तमाम शहर की ख़ातिर चमन से आते हैं

फ़रहत एहसास

तह-ए-बदन कहीं बेदार होता जाता हूँ

फ़रहत एहसास

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

फ़रहत एहसास

सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं

फ़रहत एहसास

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

फ़रहत एहसास

मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में

फ़रहत एहसास

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास

मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला

फ़रहत एहसास

महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो

फ़रहत एहसास

कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे

फ़रहत एहसास

कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना

फ़रहत एहसास

ख़ाना-साज़ उजाला मार

फ़रहत एहसास

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