बदन Poetry (page 27)

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया

फ़ाज़िल जमीली

मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है

फ़ाज़िल जमीली

कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं

फ़ाज़िल जमीली

ख़ाक में मुझ को मिरी जान मिला रक्खा है

फ़ज़ल हुसैन साबिर

ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं ही इक शख़्स था यारान-ए-कुहन में ऐसा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

या तो तारीख़ की अज़्मत से लिपट कर सो जा

फ़े सीन एजाज़

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

फ़े सीन एजाज़

नज़्म

फ़ातिमा हसन

मनाज़िर ख़ूब-सूरत हैं

फ़ातिमा हसन

एक नज़्म माँ के लिए

फ़ातिमा हसन

आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें

फ़ातिमा हसन

तिरे अद्ल के ऐवानों में

फर्रुख यार

कुश्तगान-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम-रा

फर्रुख यार

गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

धूप छूती है बदन को जब 'शमीम'

फ़ारूक़ शमीम

दर्द के चेहरे बदल जाते हैं क्यूँ

फ़ारूक़ शमीम

रात काफ़ी लम्बी थी दूर तक था तन्हा मैं

फ़ारूक़ शफ़क़

मैं हूँ 'मुज़्तर' बदन की नगरी में

फ़ारूक़ नाज़की

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें

फ़ारूक़ मुज़्तर

आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है

फ़ारूक़ अंजुम

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

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