नज़्म

अल-अमाँ

ताज़ियाने गुनहगार हाथों में हैं बे-गुनाहों की ख़ैर

वो जो क़ाज़ी अदालत गवाह ओ सनद इल्म-ओ-दानिश और तहरीर से मुंसलिक इक रिवायत की तहज़ीब थी

वो कहीं खो गई

एक लम्बा सफ़र रुक गया

किस लिए रुक गया

अल-हज़र!

अल-हज़र! ये दरिंदा-सिफ़त नीम वहशी मुब्तला-ए-जुनूँ ताज़ियाने लिए

ताज़्यानों की ज़द में तड़पता बदन ख़ूँ उगलता बदन

कैसी कुचली हुई ख़्वाहिशों वहशियाना हवस-कारियों का निशाना बना

किस जिबिल्लत की तस्कीं का सामाँ हुआ

अल-मदद अल-मदद ऐ ख़ुदा!

ताज़ियाने गुनहगार हाथों में हैं

बे-गुनाहों की ख़ैर!

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