सुन रहे हैं कान जो कहते हैं सब
लोग लेकिन सोचते कुछ और हैं
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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वो इक लम्हा
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
सुनती रही मैं सब के दुख ख़ामोशी से
कौन ख़्वाहिश करे कि और जिए
नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ
भूल गई हूँ किस से मेरा नाता था
किस से बिछड़ी कौन मिला था भूल गई
उस के प्याले में ज़हर है कि शराब
कोई नहीं है मेरे जैसा चारों ओर
एक नज़्म माँ के लिए