भूल गई हूँ किस से मेरा नाता था
और ये नाता कैसे टूटा भूल गई
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मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ
मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें
ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया
किस से बिछड़ी कौन मिला था भूल गई
मैं ने माँ का लिबास जब पहना
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
रुका जवाब की ख़ातिर न कुछ सवाल किया
मनाज़िर ख़ूब-सूरत हैं
कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का
सुन रहे हैं कान जो कहते हैं सब