बहुत गहरी है उस की ख़ामुशी भी
मैं अपने क़द को छोटा पा रही हूँ
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(871) Peoples Rate This
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
पूरी न अधूरी हूँ न कम-तर हूँ न बरतर
मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी
सुनती रही मैं सब के दुख ख़ामोशी से
एक नज़्म माँ के लिए
जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में
कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का
अच्छा लगता है
मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें
आख़िरी लफ़्ज़
रात दरीचे तक आ कर रुक जाती है