बदन Poetry (page 26)

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे

ग़ज़नफ़र

आँधी में भी चराग़ मगन है सबा के साथ

ग़ौसिया ख़ान सबीन

तुम्हारे शहर में आँगन नहीं है

ग़ौस सीवानी

हवा के होंट खुलें साअत-ए-कलाम तो आए

ग़ालिब अयाज़

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही

ग़ालिब अयाज़

हवा के होंट खुलें साअत-ए-कलाम तो आए

ग़ालिब अयाज़

बस तेरे लिए उदास आँखें

ग़ालिब अयाज़

सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है

ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

ग़ालिब

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ग़ालिब

तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं

फ़ुज़ैल जाफ़री

आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था

फ़ुज़ैल जाफ़री

सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते

फ़ुज़ैल जाफ़री

साहब दिलों से राह में आँखें मिला के देख

फ़ुज़ैल जाफ़री

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद

फ़ुज़ैल जाफ़री

लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए

फ़ुज़ैल जाफ़री

आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था

फ़ुज़ैल जाफ़री

न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख

फ़िरदौस गयावी

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

एक नज़्म

फ़ज़्ल ताबिश

आ के हो जा बे-लिबास

फ़ज़्ल ताबिश

न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती

फ़ज़्ल ताबिश

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

कली कली का बदन फोड़ कर जो निकला है

फ़ज़्ल ताबिश

मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते

फ़ाज़िल जमीली

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