बदन Poetry (page 41)

ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

मन के बरगद तले अँगारों की माला भी जपी

अहमद रज़ी बछरायूनी

शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई

अहमद नदीम क़ासमी

क़यामत

अहमद नदीम क़ासमी

पस-ए-आईना

अहमद नदीम क़ासमी

शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई

अहमद नदीम क़ासमी

दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने

अहमद नदीम क़ासमी

टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया

अहमद मुश्ताक़

रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू

अहमद मुश्ताक़

किस रक़्स-ए-जान-आे-तन में मिरा दिल नहीं रहा

अहमद मुश्ताक़

ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना

अहमद मुश्ताक़

दुख की चीख़ें प्यार की सरगोशियाँ रह जाएँगी

अहमद मुश्ताक़

चश्म ओ लब कैसे हों रुख़्सार हों कैसे तेरे

अहमद मुश्ताक़

दिलों पे ज़ख़्म लगा के हज़ार गुज़री बहार

अहमद मासूम

वो इक सवाल-ए-सितारा कि आसमान में था

अहमद महफ़ूज़

किसी का अक्स-ए-बदन था न वो शरारा था

अहमद महफ़ूज़

ज़िंदा रहने का तक़ाज़ा नहीं छोड़ा जाता

अहमद कामरान

उस के लहजे का वो उतार चढ़ाओ

अहमद जावेद

गेरवे कपड़े बदन पर हाथ लोहे के कड़े

अहमद जहाँगीर

वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़

अहमद हुसैन माइल

रास्ते में शाम का मुक़द्दर होना

अहमद हमेश

मुकाशफ़ा-2

अहमद हमेश

अबद

अहमद हमेश

नित-नए रंग से करता रहा दिल को पामाल

अहमद हमदानी

टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'

अहमद फ़राज़

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है

अहमद फ़राज़

तो बेहतर है यही

अहमद फ़राज़

सवाल

अहमद फ़राज़

मुहासरा

अहमद फ़राज़

मयूरका

अहमद फ़राज़

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