क़यामत

चलो इक रात तो गुज़री

चलो सफ़्फ़ाक ज़ुल्मत के बदन का एक टुकड़ा तो कटा

और वक़्त की बे-इंतिहाई के समुंदर में

कोई ताबूत गिरने की सदा आई

ये माना रात आँखों में कटी

एक एक पल बुत सा बन कर जम गया

इक साँस तो इक सदी के बाद फिर से साँस लेने का ख़याल आया

ये सब सच है कि रात इक कर्ब-ए-बे-पायाँ थी

लेकिन कर्ब ही तख़्लीक़ है

ऐ पौ फटे के दिलरुबा लम्हो गवाही दो

यूँही कटती चली जाएँगी रातें

और फिर वो आफ़्ताब उभरेगा

जो अपनी शुआओं से अबद को रौशनी बख़्शेगा

फिर कोई अँधेरी धरती को न छू पाएगा

दानायान-ए-मज़हब के मुताबिक़ हश्र आ जाएगा

लेकिन हश्र भी इक कर्ब है

हर कर्ब इक तख़्लीक़ है

ऐ पौ फटे के दिलरुबा लम्हो गवाही दो

(899) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qayamat In Hindi By Famous Poet Ahmad Nadeem Qasmi. Qayamat is written by Ahmad Nadeem Qasmi. Complete Poem Qayamat in Hindi by Ahmad Nadeem Qasmi. Download free Qayamat Poem for Youth in PDF. Qayamat is a Poem on Inspiration for young students. Share Qayamat with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.