बरस के छट गए बादल हवाएँ गाती हैं
गरजते नालों में चरवाहियाँ नहाती हैं
वो नीली धोई हुई घाटियों से दो गूँजें
किसी को दुख-भरी आवाज़ में बुलाती हैं
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
वो पानी भरने चली इक जवान पंसारी
गुनाह ओ सवाब
गुलों में रंग तो था रंग में जलन तो न थी
जिसे हर शेर पर देते थे तुम दाद
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ
बूढ़े माँ बाप बिलकते हुए घर को पलटे
साँस लेना भी सज़ा लगता है
जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब
दश्त-ए-वफ़ा