मेहरबाँ रात ने
अपनी आग़ोश में
कितने तरसे हुए बे-गुनाहों को भींचा
दिलासा दिया
और उन्हें इस तरह के गुनाहों की तर्ग़ीब दी
जिस तरह के गुनाहों से मीलाद-ए-आदम हुआ था
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
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मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ
तदफ़ीन
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
तिरी ज़ुल्फ़ें हैं कि सावन की घटा छाई है
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
तेरी महफ़िल भी मुदावा नहीं तन्हाई का
सारी दुनिया हमें पहचानती है
गीत
तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
तर्क-ए-दरयूज़ा
तू बिगड़ता भी है ख़ास अपने ही अंदाज़ के साथ