जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब
दूर तक मौज के रोने की सदा आती है
यक-ब-यक फिर यही टूटी हुई बिखरी हुई मौज
इक नई मौज में ढलने को पलट जाती है
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1239) Peoples Rate This
हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
तिमतिमाते हैं सुलगते हुए रुख़्सार तिरे
अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
फ़न
मुमकिन है फ़ज़ाओं से ख़लाओं के जहाँ तक
बाजरे की फ़स्ल से चिड़ियाँ उड़ाने के लिए
उदास चाँद ने बदली की आड़ में हो कर
आँसुओं में भिगो के आँखों को
शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे
रेश-ए-गुल को रग-ए-संग बनाने वालो
सावन की ये रुत और ये झूलों की क़तारें
मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन