मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन
चुप भी तो बयान-ए-मुद्दआ है
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आँख खुल जाती है जब रात को सोते सोते
वक़्त
इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
आँसुओं में भिगो के आँखों को
क़यामत
खड़खड़ाती डोल वो धम से कुएँ में गिर गई
जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है
गली के मोड़ पे बच्चों के एक जमघट में
जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ
बात कहने का जो ढब हो तो हज़ारों बातें