बात कहने का जो ढब हो तो हज़ारों बातें
एक ही बात में कह जाते हैं कहने वाले
लेकिन इन के लिए हर लफ़्ज़ का मफ़्हूम है एक
कितने बे-दर्द हैं इस शहर के रहने वाले
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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इक उम्र के ब'अद मुस्कुरा कर
लम्हा
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए
मुझे तलाश करो
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे
क़लम दिल में डुबोया जा रहा है
आज की रात भी तन्हा ही कटी
रेश-ए-गुल को रग-ए-संग बनाने वालो
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता