जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा
Habib Jalib
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Gulzar
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Wasi Shah
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तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा
तिमतिमाते हैं सुलगते हुए रुख़्सार तिरे
जंगल की आग
ईद का दिन है फ़ज़ा में गूँजते हैं क़हक़हे
अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
वक़्त
गोरे हाथों में ये धानी चूड़ियों की आन-बान
इंफ़िसाल
कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ
सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
उन का आना हश्र से कुछ कम न था
मुझे तलाश करो