सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
गठरियाँ सर पे उठाए हुए ईमानों की
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1735) Peoples Rate This
हिकमत-ए-अहल-ए-मदरसा का ग़ुरूर
बलाग़त का अलमिया
एक दरख़्वास्त
ज़िक्र-ए-मिर्रीख़-ओ-मुश्तरी के साथ
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
गो मिरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं
क़रिया-ए-मोहब्बत
दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने
गुनाह ओ सवाब
अज़ली मसर्रतों की अज़ली मंज़िल
एहसास में फूल खिल रहे हैं
नया साल