हिकमत-ए-अहल-ए-मदरसा का ग़ुरूर
मेरी वहशत से दब के हार गया
तेरा घबरा के मुस्कुरा देना
ज़िंदगी की नक़ाब उतार गया
Jaun Eliya
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दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई
किस तवक़्क़ो पे किसी को देखें
शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे
क़यामत
इतना मानूस हूँ सन्नाटे से
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
मैं हूँ या तू है ख़ुद अपने से गुरेज़ाँ जैसे
आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
क़रिया-ए-मोहब्बत
लज़्ज़त-ए-आगही
जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब
ईद का दिन है फ़ज़ा में गूँजते हैं क़हक़हे