बात कहने का जो ढब हो तो हज़ारों बातें
एक ही बात में कह जाते हैं कहने वाले
लेकिन उन के लिए हर लफ़्ज़ का मफ़्हूम है एक
कितने बे-दर्द हैं इस शहर के रहने वाले
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Love Poetry
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Friends Poetry
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ईद का दिन है फ़ज़ा में गूँजते हैं क़हक़हे
जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे
फ़न
आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
आग़ोश में महकोगे दिखाई नहीं दोगे
खड़खड़ाती डोल वो धम से कुएँ में गिर गई
ज़िक्र-ए-मिर्रीख़-ओ-मुश्तरी के साथ
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की
मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ