आग़ोश में महकोगे दिखाई नहीं दोगे
तुम निकहत-ए-गुलज़ार हो हम पर्दा-ए-शब हैं
Parveen Shakir
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मिरे ख़ुदा ने किया था मुझे असीर-ए-बहिश्त
गुनाह ओ सवाब
सारी दुनिया हमें पहचानती है
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ
खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए
सफ़र और हम-सफ़र
क़रिया-ए-मोहब्बत
गोरे हाथों में ये धानी चूड़ियों की आन-बान
अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या
दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई
अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लो