अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लो
प्यार के बोल तो होंटों से निकल जाते हैं
अपने तेवर भी सँभालो कि कोई ये न कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं
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बाजरे की फ़स्ल से चिड़ियाँ उड़ाने के लिए
तर्क-ए-दरयूज़ा
सफ़र और हम-सफ़र
वो दूर झील के पानी में तैरता है चाँद
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
सूरज को निकलना है सो निकलेगा दोबारा
मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
रुख़्सार हैं या अक्स है बर्ग-ए-गुल-ए-तर का
ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ
यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील
आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ